Poem By Amit Jha on Mithilanchal

भारत के महान धरती पर,

छै मिथिला एक अंग अभिन्न,

विद्यापति जतय भेला शुशोभित,

आर्यभट्ट जयत छेलईथ प्रवीण।

से मिथिला आई किया उदास,

किए सूना बिना ज्ञान प्रकाश,

विद्या के धुनी रमाबू ने,

कर्मठ योगी कहलाबु ने।

यइ बहिन आब जूनि घर रहु,

सब क्षेत्र मे अपन चरण धरू,

सुनु आकांक्षा स्वातिक आवाहन,

ब्रम्हान्ड सुनय अहाँक गर्जन।

आनंद, संदीप, राजू, प्रकाश

बनि गरूड़ तोरु ई नागपाश,

सब मैथिल जन के लागल आस,

करियौ आपण पूरा प्रयास।

दीपक आ अरविंदक प्रयास,

JMJM छू रहल आकाश,

विदेह पर गजेंद्रजीक प्रकाश,

चित्रांशु मुकेशक नव आगाज,

प्रभात बहेलाइथ प्रेमक बसात,

धरणी अछि प्यासल धेने आस,

सब मिली हरु मिथिलाक त्रास,

तखने करते मिथिला विकाश,

तखने करते मिथिला विकाश।

सुनु नवयुवकक जुगलबंद,

मिथिला भारत के अभिन्न अंग,

आयल अछि सब मे नव उमंग,

VOM, VOM महिला विंग के संग।

नवयुवकक सुनु ई पुकार,

माध्यम अछि “अमित”क ई विचार,

करू दुष्ट पर ज़ोर प्रहार,

बाजू “जय मिथिला जय मैथिली” उद्घोष अपार।

रचनाकार- अमित मोहन झा

ग्राम- भंडारिसम(वाणेश्वरी स्थान;), मनीगाछी, दरभंगा, बिहार, भारत।

नोट….. महाशय एवं महाशया से हमर ई विनम्र निवेदन अछि जे हमर कुनो भी रचना व हमर रचना के कुनो भी अंश के प्रकाशित नहि कैल जाय।

::::::: उपरोक्त रचना मे आनंदजी, आकांक्षा एवं स्वाति बहिन के सहयोग बहुत सराहनीय अछि।

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