भारत के महान धरती पर, छै मिथिला एक अंग अभिन्न, विद्यापति जतय भेला शुशोभित, आर्यभट्ट जयत छेलईथ प्रवीण। से मिथिला आई किया उदास, किए सूना बिना ज्ञान प्रकाश, विद्या के धुनी रमाबू ने, कर्मठ योगी कहलाबु ने। यइ बहिन आब जूनि घर रहु, सब क्षेत्र मे अपन चरण धरू, सुनु आकांक्षा स्वातिक आवाहन, ब्रम्हान्ड सुनय …