Description
‘मिथिला लोक चित्रकला’ ‘मधुबनी चित्रकला’ के नाम से भी विख्यात है। पर मधुबनी शब्द इस चित्रकला के क्षेत्र को संकुचित करता है। चाहे मधुबनी हो या सहरसा, पूर्णिया हो या भागलपुर, दरभंगा हो या समस्तीपुर, मुजफ्फरपुर हो या सीतामढ़ी, बेतिया हो या मधेपुरा, सभी स्थलों पर इस शैली की चित्रकारी की जाती है। मधुबनी निश्चय ही इसका केंद्र स्थान है, परंतु इसी आधार पर इसे मधुबनी चित्रकला कहना युक्तिसंगत नहीं है। व्यापक आधार पर इसका नामकरण ‘मिथिला लोक चित्रकला’ ही उपयुक्त है। मिथिला लोक चित्रकला को विश्व चित्रकला के नक्शे पर प्रतिष्ठित करने का श्रेय स्वर्गीय भास्कर कुलकर्णी एवं कला मनीषी स्वर्गीय उपेंद्र महारथी को है। व्यवसायीकरण की होड़ में विश्व बाज़ार में स्थान दिलाने का श्रेय स्वर्गीय ललित नारायण मिश्र, पूर्व विदेश व्यापार मंत्री, भारत सरकार को है। लेकिन जैसे-जैसे इस कला का व्यवसायीकरण होता गया, कलाकारों की कलात्मक संलग्नता सिकुड़ती गई। आज स्थिति यह आ गई है कि मिथिला लोक चित्रकला को लोककला कहा जाए या ललित कला अथवा एक व्यवसायिक कला, यक्ष प्रश्न है! आवश्यकता है, आज इसके मूल स्वरूप की रक्षा करने की। यह समय की मांग है। जो लोग ऐसा नहीं करते, वे इस व्यवसायीकरण में अपने समानधर्मियों से पीछे छूट जाते हैं। मिथिला लोक चित्रकला वैसे तो पारंपरिक रूप से महिलाओं की गृहकला थी, परंतु व्यवसायीकरण के कारण आज पुरुष वर्ग भी इस क्षेत्र में पदार्पण करने लगे हैं। आज के भौतिकवादी युग में लोग पूर्णत: आत्मकेंद्रित हो गए हैं। समाज आज कलाकारों को उपेक्षा की दृष्टि से देखता है। सरकार के यहाँ का$गज़ पर तो सभी सुविधाएँ उपलब्ध हैं, परंतु ज़मीन पर वे सारी सुविधाएँ नगण्य हैं। साथ ही आज कलाकृति के दलालों से भी कलाकारों की रक्षा करना आवश्यक हो गया है।
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